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शूल से प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैंप्रगतिशील लेखक संघ प्रलेसं इकाई देवास

शूल से प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं
प्रगतिशील लेखक संघ प्रलेसं इकाई देवास
देवास। प्रसिद्ध व्यंग्यकार लेखक हरिशंकर परसाई के जन्मशताब्दी वर्ष के रूप में संगोष्ठी उपाध्यक्ष कैलाश सिंह राजपूत के निवास 23 कामना नगर में आयोजित परसाई की जन्मशती पर अधिवक्ताओं की चर्चा में अध्यक्षता डॉ. प्रकाश कांत ने की । संचालन डॉ. युगल किशोर राठोर द्वारा किया गया। साथ ही जुगल किशोर राठौर द्वारा गीत की प्रस्तुति से कार्यक्रम कि शुरुआत की गई । कुसुम वागड़े द्वारा परसाई जी की राजनीतिक व्यंग्य पर आधारित कहानी भेड़ और भेडिय़ा जो कि 50 वर्ष पूर्व लिखी आज भी प्रासंगिक है।
 ठिठुरता हुआ गणतंत्र
आज पूरी तरह से टूट रहा है। लेखक ,कलाकार ,विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता अपनी बात रखने मैं सहमें हुए हैं। ऐसी स्थिति में लेखक संगठनों को एकजुट होकर विचार विमर्श करना इस समय की महति आवश्यकता है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं विचारक डॉ प्रकाश कांत ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहां कि सर्वप्रथम प्रगतिशील लेखक संघ देवास के साथियों को शुभकामना देते हुए कहा वे अपने उद्देश्य में सफल हों । आपने कहा परसाई जी ने जिस शैली से समाज की विसंगतियों को देखा उन पर प्रहार किया और लिखा उनका कहने का तरीका देखने का तरीका साथ ही समझने का तरीका हमें समझना है उन्होंने समाज पर निडर होकर प्रहार कियां। परसाई जी से किसी के प्रश्न करने पर आप तो थानेदार बन सकते थे उन्होंने जवाब दिया मैं साहित्य में थानेदार ही हूं। कांत सर ने कहा कि आज समाज में बदलाव के लिए अपने आसपास उठते सवालों के प्रति जागरुक होना चाहिए। ज्योति देशमुख ने कहां कि परसाई के प्रेरक कथनों को सामाजिक ,राजनीतिक विसंगतियों पर इतना लिखा गया है कि, महीनों तक चर्चा की जाए तो कम है । जो जनता की भलाई का काम करते हैं उनका तबादला कर दिया जाता है । बुजुर्ग युवाओं से उम्मीद करते हैं लेकिन स्वयं उन्हें कर्तव्यों का पालन नहीं करते। बहादुर पटेल ने कहा कि जो परसाई जी को पढ़ ले, वह स्वयं को भी जान लेगा क्योंकि वह लड़ सकते थे और लडऩा भी सिखातें थे । परसाई का कटाक्ष समकालीन होता था। 19 78 से कहीं बात 2023 आज की ही लगती हैं । कैलाश सिहं राजपूत ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस घोर अंधकार के समय में परसाई सूर्य बनकर अपने लेखन के माध्यम से भारत में आज भी खड़े है। आपके लेखों को पढ़ा जाए, उन पर आत्मसात किया जाए तो, जातिवाद ,सांप्रदायिकता जैसी प्रवृत्तियाँ भारतीय समाज से जड़ मूल सहित समाप्त हो सकती है। अंधविश्वास पाखंड समाप्त कर समाज का वास्तविक रूप लाया जा सकता है । प्रो.एस.एम. त्रिवेदी ने मार्क्सवादी विचारधारा पर परसाई जी की बात रखी। प्रो. एफ. बी. मानेकर ने कहा कि परसाई जो ना समाज से डरते थे, ना शासन से डरते थे उन्होंने सत्य को परोसा था जिसे हमें समझना होगा । डॉ. जुगल किशोर राठौर ने  कहा कि परसाई को पढे तो अपने जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं ,लेखक, कवि ,साहित्यकार सभी रंगमंच के पात्र जैसे हैं जिनकी ताकत उनकी कलम है। कार्यक्रम में ओम प्रकाश वागड़े, भारत सिंह मालवीय, राजेंद्र राठौर, महमूद पठान, आर .पी. सोलंकी, एस. एल. परमार सर, सत्यवान पाटिल, अशोक साहू आदि उपस्थित रहे।


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