स्वांस सबसे बड़ा मुसाफिर है, जो बचपन से बुढ़ापे तक सबके साथ चलता है...सद्गुरु मंगल नाम साहेब
देवास। स्वांस सबसे बड़ा मुसाफिर है, जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सबके साथ चलता है। इस सबसे ज्यादा चलने वाले मुसाफिर स्वांस से तो अनुभव लो दुनिया का। कि दुनिया में आपके साथ कौन-कौन चले और कौन-कौन छूट गए हैं।ज्ञानेंद्री छूट गई,काम इंद्री छूट गई, इधर-उधर की सच झूठ छूट गई। लेकिन स्वांस अखंड चले आ रही है। साहब का नाम अखंड है, जो आज तक कभी खंडित हुआ ही नहीं। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरुवाणी पाठ, गुरु शिष्य चर्चा में व्यक्त किए। आगे कहा कि बाकी सब मिलते ओर छूटते गए। बचपन, जवानी, बुढ़ापा छुटा फिर तिरक्ति छुटी, राख छुटी। फिर चल दिये अखंड सांस लेकर। फिर दूसरे शरीर में अपनी चेतना, जागृति में प्रवेश कर गए। स्वांस चेतन्य पुरुष है। जो बचपन से लेकर जवानी, बुढ़ापा तक निरंतर चलती रहती हैं। उठती बैठती, विश्राम कर रही है क्या। जो मुसाफिर विश्राम करता ही नही। जो सब नगर, गांव का रास्ता जानता है। वही चेतन्य पुरुष स्वांस ही इस काया नगर का मालिक है। सिर्फ देह रूपी पत्ते अंकुरित होते और झड़ जाते हैं। आगे कहा कि जैसे आंखों में काजल का अंजन होता है। वैसे ही माता-पिता की देह का जो घर्षण हुआ उस वक्त निरंजन हुआ नीर का अंजन हुआ और उससे शरीर का निर्माण हुआ।उसमें फिर पवन रूपी धागा डाला गया। आगे कहा कि कपड़े चमड़े,पद पदार्थ संभालना छोड़ दो। जो तुमको संभाले बैठा है, श्वास उसको सम्हालो।जो तुमको आरोग्य और निर्बेर कर देगा। जो सत्य के अनुभव से दूर है। सद्गुरु से संवाद करने उनके वाणी विचारों को आत्मसात करने से ही पहचाना जाएगा। तुम्हारे पास होते हुए भी तुम उसे नहीं पहचान पाओगे। जीव भी इसी तरह सागरों का सागर है जो अनंत आकाश और सागरों में लहरा रहा हैं। लेकिन हम कपड़े, चमड़े, पद पदार्थ ओर इंद्रीयों के स्वाद में ही भूले भटके हैं। इस दौरान साध संगत द्वारा सद्गुरु मंगल नाम साहेब का शाल, श्रीफल, पुष्पमाला, नारियल भेंट कर सम्मान किया गया। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।
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