देवास। नाम का दीवाना श्वास को कहा गया है। नाम का दीवाना विचार व्यवहार से अलग है। नाम का जो दीवाना हो गया, जो उपासक है वह रोको तो नहीं रुकता। पानी की नदियां बहती हैं। लेकिन सांस के अंदर सुखी नदी अमी बहाई, स्वास सुखी नदी है जिसमें अमृत बहता। इसमें ही स्नान करना है। पानी नहीं है फिर भी नहा रहे हैं। फिर भी चैतन्य और सुन रहे हैं। बिनु पद चलई, सुनई बिनु काना, कर बिनु कर्म करई विधि नाना। स्वांस के अंदर जो सुखी नदी बह रही वह नदी बिना पेर से चल रही है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि इस संसार में मानव बंधनों में बंधा हुआ है। बंधनों से मुक्त नहीं है। कोई विचार व्यवहारों के बंधन से तो कोई नातों रिश्तो के बंधन से बंधा है, छूटे कैसे। लेकिन जो स्वर का उपासक हैं। वह इन सारे बंधनों से मुक्त है। बंधनों को छोड चला बंजारा। सांस जो है सारे बंधनों से मुक्त है।जो देह को छोड़कर बाहर निकल जाती है। जो मुक्ति का मार्ग है। जो सारे करम भरम से मुक्त कर देता है। आदि अनादि का मुसाफिर है सांस। सांस है तो आदमी जिंदा है, नहीं तो मुर्दा हो जाता है, जो मुर्दा है वह चलने वाला नही है। नाम परमात्मा का चेतन्य पुरुष है। और जीवित हैं। नाम ही मुक्ति का मार्ग है। 84 लाख योनियों के जन्म मरण के दुखों से मुक्त कर देता है नाम। आगे कहा कि जो पोथी पढ़ते हैं उन्हें पोथी पंडित कहा गया है। लेकिन जो सुरगुरु को समझ ले जो सुर को साध लेता है और पढ़ लेता है उसको सुर पंडित कहा गया है। संसार में सुरों को पढ़ने वाला पंडित बिरला ही होते हैं। सुरगुरु मुक्ति का भंडार है। जो नाम को जागृत करने वाला है। उत्पत्ति नाम से ही होती है, नाम ही अंकुरित, नाम ही सबके संग है, नाम बिछुड़ गया तो खा गया मुर्दा जंग। अगर नाम बिछुड़ गया गया तो फिर मुर्दा जंग खा जाता है।
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