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मुंशी प्रेमचंद जयंती पर रचनात्मक गोष्ठी आयोजित – “साहित्य का काम राजनीति के आगे मशाल लेकर चलना है”

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर रचनात्मक गोष्ठी आयोजित – “साहित्य का काम राजनीति के आगे मशाल लेकर चलना है”
देवास। प्रगतिशील लेखक संघ व स्कॉलर एकेडमी के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी साहित्य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी की 145वीं जयंती पर एक रचनात्मक गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर बी.एस. मालवीय ने की तथा संचालन श्रीमती कुसुम वागडे द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रेमचंद जी के साहित्य और उनके सामाजिक सरोकारों को केंद्र में रखते हुए विभिन्न वक्ताओं ने विचार साझा किए।
       गोष्ठी की शुरुआत प्रेमचंद जी की प्रसिद्ध कहानी "बड़े भाई साहब" की प्रस्तुति से हुई, जिसे स्कॉलर एकेडमी की छात्राओं ने प्रभावशाली ढंग से मंचित किया। इस प्रस्तुति के माध्यम से बच्चों में बड़ों के प्रति आदर और अनुशासन की भावना विकसित करने का संदेश दिया गया।
       सुश्री कुसुम वागडे ने प्रेमचंद के कथन को उद्धृत करते हुए कहा, "साहित्यकार पैदा होता है, बनाया नहीं जाता।" उन्होंने साहित्य में निहित जिज्ञासा और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया। कैलाश सिंह राजपूत ने प्रेमचंद के समय और आज के भारत की सामाजिक समानताओं की चर्चा करते हुए वर्तमान सरकार की नीतियों पर चिंता जताई। उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के 18वें राष्ट्रीय सम्मेलन के घोषणा-पत्र का वितरण भी किया और अपील की कि प्रेमचंद की विचारधारा को आम जनता तक पहुँचाया जाए ताकि समाज में परिवर्तन लाया जा सके। प्रो. राम अयोध्या सिंह द्वारा रचित समसामयिक लेख "कफ़न में लिपटी भारतीय लोकतंत्र की लाश" का वाचन किया गया, जो आज के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर एक सशक्त टिप्पणी थी। श्री मदनलाल जेठवा ने प्रेमचंद की सादगी और सहजता पर आधारित एक कविता प्रस्तुत की –
“ख्वाहिश नहीं है मुझे मशहूर होने की,
मुझे पहचानते हो, बस इतना ही काफी है।”
   श्री सुंदरलाल परमार ने किसानों की दुर्दशा का चित्रण करते हुए प्रेमचंद की कहानी “पूस की रात” के माध्यम से ग्रामीण जीवन की यथार्थता को उजागर किया। अरविंद सरदाना ने धर्म, आस्था और अंधविश्वास पर कटाक्ष करते हुए नुक्कड़ नाटक की भूमिका को रेखांकित किया और बताया कि कैसे आज भी सामाजिक दिशा भ्रमित हो रही है। शिवानी जी, एक कलाकार और प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित साहित्यप्रेमी ने सभी रचनाकारों की एकजुटता और संगठन की आवश्यकता पर बल दिया। वरिष्ठ कवि बहादुर पटेल ने प्रेमचंद की “पंच परमेश्वर” जैसी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक न्याय की अवधारणा को आज के संदर्भ में प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने बहुत पहले ही सामाजिक विघटन के संकेत दिए थे, जिसे आज भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। प्रो. बी.एस. मालवीय ने अध्यक्षीय भाषण में प्रेमचंद की रचनाओं को समतामूलक समाज की स्थापना का माध्यम बताया और कहा कि आज के लेखकों को उनके विचारों से प्रेरणा लेकर लेखन की सच्ची भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का संघर्ष गहरा हो गया है और कलमकारों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। उन्होंने महात्मा बुद्ध, संत कबीर और डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को भी आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक बताया, जिनसे समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवता की स्थापना संभव है। कार्यक्रम में विनोद प्रजापति, अनु गुप्ता, रमेश आनंद, भारत सिंह, ओम प्रकाश वागडे सहित अनेक साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का समापन श्री कैलाश सिंह राजपूत द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ हुआ।

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