परमात्मा को कहीं खोजने की जरूरत नहीं अपने भीतर झांको... सद्गुरु मंगल नाम साहेब
जो अपने भीतर चला गया वह स्वयं परमात्मा हो जाता है... सद्गुरु मंगल नाम साहेब
देवास। संत कबीर अनूठे हैं प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। क्योंकि कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है। जाति पाति से उनका कुछ लेना-देना नहीं है। कबीर जीवन भर गृहस्थ रहे जुलाहे बुनते रहे, कपड़े बेचते रहे। कभी घर छोड़ हिमालय नहीं गए। कहीं और खोजने की आवश्यकता नहीं है। कबीर ने कुछ भी नहीं छोड़ा और सभी कुछ पा लिया। जो अपने भीतर चला गया। वह स्वयं परमात्मा हो जाता है। जो भीतर चला गया वह दुख में जीता है, ना सुख मे। वह आनंद में जीता है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि जहां अंधों की भीड़ हो वहां आंख वाला पागल हो जाता है। जहां मूढ़ों की भीड़ हो। वहां बुद्धिमान पागल हो जाता है। सत्यनाम ताहि को मिली है कहे कबीर दीवाना। एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हारा जीवन। क्योंकि तुमने अंधेरे को ही प्रकाश समझ लिया है। होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूं। तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिए प्यास उठती है, टटोलता है, गिरता है उठता है, मार्ग खोजता है, गुरु खोजता है। लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश समझ ले तब सारी यात्रा अवरुद्ध हो जाती है। मृत्यु को ही समझ ले जीवन तो फिर जीवन का द्वार बंद हो जाता है। इस दौरान सद्गुरु मंगल नाम साहेब का साथ संगत द्वारा नारियल भेंट कर पुष्प मालाओं से स्वागत किया गया। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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