शरीर बनते और बिगड़ते हैं, मुक्ति चाहते हो तो कथनी और करनी में अंतर मत रखो... सद्गुरु मंगल नाम साहेब,,,
कथनी और करनी में अंतर मत रखो, करनी अमृत की खान तो कथनी विष की लो है. ..सद्गुरु मंगल नाम साहेब
देवास। करनी छोड़ कथनी कथे अज्ञानी दिन रात, कुकर समान भूंकत फिरे सुनी सुनाई बात। अज्ञानी दिन-रात करनी को छोड़कर कथनी में लगे हुए हैं। करनी अमृत की खान है और कथनी विष की लो है। कथनी कर-कर के लोग 84 लाख योनियों मे भटक रहे हैं। कथनी और करनी में अंतर रख रहे हैं। जीवन का अर्थ भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताया है कि परमार्थ करो, संत सेवा करो। और कथन सबसे न्यारा है। जिसमें पुरुष प्रेम है। श्वास एक पुरुष है। उसकी करनी करने का उपदेश है गीता में। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि शरीर जितने भी हैं सब बनते और बिगड़ते रहते हैं। इससे मुक्ति चाहते हो तो कथनी और करनी में अंतर मत रखो। लेकिन लोग कथनी और करनी में अंतर रख रहे हैं। इसलिए बार-बार जन्म और मरण के फेर में भटक रहे हो। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु शिष्य संवाद, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। आगे कहा कि दुखों को मारने से दुख दूर नहीं होंगे। लेकिन जो स्वर को साध लेंगे ओर सुर की भक्ति करेंगे उनके दुख दूर जाएंगे। जो सूर भक्ति से न्यारे हैं। जो केवल कथनी करने में लगे है। वह इस संसार रूपी दल-दल में फंसे हुए हैं। साहब का कथन है कि कथनी और करनी साथ-साथ करें,तो साहब हाल हजूर है। क्योंकि हरि अनंत है, अनंत हरिओं के चक्कर में भटको मत। एक हरी है सांस जो सब दुखों और अज्ञानता को हर लेता है, वह सुरगुरु है। वह सब में समान और व्यापक रूप में समाया हुआ है। सूर की भक्ति करने वाला सदैव प्रेम से भरा रहता है। जहां प्रेम वहां हिस्सेदारी नहीं है। क्योंकि प्रेम में हिस्सा नहीं होता। जहां हृदय प्रेम से भरा हो और जो स्वांस की भक्ति करता हो, जो स्वांस के भजन करता है। उसके जीवन मे कभी दुख नहीं आ सकते। इस दौरान साध संगत द्वारा सदगुरु मंगल नाम साहेब को नारियल भेंट कर आरती की। यह जानकारी सेवा वीरेंद्र चौहान ने दी।

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