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इतिहासकारों ने देवास के इतिहास पर की सार्थक चर्चा

इतिहासकारों ने  देवास  के इतिहास पर की सार्थक चर्चा
देवास।
 शहर के इतिहासवेत्ताओं ने देवास के इतिहास पर सार्थक चर्चा के माध्यम से कई महत्वपूर्ण जानकारी उपस्थितों के बीच साझा की । सदियों पूर्व मालवा और देवास के व्यापार, भौगोलिक स्थिति,देवास के रियासत कालीन इतिहास तथा 1857 से लेकर 1947 तक के कालखंड में हुए स्वतंत्रता संग्राम में देवास की भूमिका पर
हुई चर्चा में उपस्थितों के समक्ष देवास के इतिहास से संबंधित कई अनसुने तथ्य उजागर हुए ।
           देवास के इतिहास पर यह चर्चा इतिहास और साहित्यकारों की मासिक रचना गोष्ठी में हुई । कार्यक्रम में 1735 के पूर्व और पश्चात मालवा के व्यापारिक केंद्रों की चर्चा करते हुए इतिहासवेत्ता प्रदीप व्यास ने कहा कि उस कालखंड में नागदा क्षेत्र  एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र हुआ करता था , जहां से बहने वाली नागधम्मंन नदी से क्षिप्रा और फिर चंबल के जल मार्ग से होते हुए सामान वैशाली तक पहुंचाया जाता था । इसी प्रकार नागदा से  स्थल मार्ग से व्यापारिक वस्तुएं  महिष्मति ( महेश्वर ) पहुंचाई जाकर वहां से नर्मदा नदी के जल मार्ग से भरूच तक पहुंचाई जाती थी । फिर वहां से अरब सागर के पार ग्रीस और फारस तक व्यापार होता था । देवास के नागदा, बिलावली, कायथा , गंधर्वपुरी बड़े व्यवसायिक केंद्र थे जहां बर्तन,  देव प्रतिमाएं, बडी नौकाएँ निर्मित होती थी जिनके रोम और ग्रीस तक निर्यात किये जाने की पुख्ता जानकारी इतिहास में दर्ज है । ईसा पूर्व उज्जैयनी के राज्यपाल रहे अशोक के नागदा,देवास आने  और पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली कूच के समय देवास टेकरी की तलहटी में विश्राम करने के तथ्य भी इतिहास में मौजूद है।
              रियासतकालीन समय का उल्लेख करते हुए इतिहासकार दिलीप जाधव ने कहा मुगलों के बाहुबली होने का भरम फैलाया गया है जिनके मराठा शासकों ने छक्के छुड़ाए । धार नगरी के साबुसिंह परमार वंश के शासक थे,जो 1610 में देवास,नागदा नगर आये थे जिन्होंने बाद में  तत्कालीन परिस्थितिवश अहमदनगर के सूपे गांव में शरण ली और भोंसले परिवार का आश्रय लेने के बाद उनके वंशज कालोजी पहले पवार शासक के रूप में देवास आये। तात्कालीन समय में दिवासा नाम का एक बड़ा व्यापारी देवास आया था जिसके नाम पर शहर का नाम हुआ। बाद में तुकोजीराव प्रथम ने यहां  1724 में चौकी स्थापित की थी । जिसके बाद यहां आबादी का विकास हुआ । देवास रियासत के बारे में कई रोचक जानकारियों से दिलीप जाधव द्वारा अवगत कराया गया ।  बैंगलोर के बाद देवास रियासत ही ऐसी रियासत रही है जहां दो राजाओं का राज रहा है । आज का सामलात रोड दोनों राज्यों की विभाजन रेखा हुआ करती थी ।
         इतिहास व साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर ने कहा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 के स्वतंत्रता मिलने तक देवास का बड़ा योगदान रहा है। जिले के आज के राघोगढ़, नेमावर,हाटपिपलिया के कई व्यक्तियों के नाम इन संग्रामों के इतिहास में दर्ज है।
          इतिहास चर्चा और विमर्श के  इस कार्यक्रम का संचालन  शिक्षाविद  विजय श्रीवास्तव ने किया तथा आभार रचनाकार मोहन वर्मा ने माना । कार्यक्रम में डॉ प्रकाश कांत, हरी जोशी,प्रसून पंड्या,श्री भागवत, कैलाश सिंह राजपूत, संदीप बघेल,मेहरबानसिंह,रमण कुमार,श्री कालेलकर,सुभाष लाम्बोरे, सहित अनेक सुधी श्रोता उपस्थित थे।

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