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मैत्री भावना का उदय और बैर भावना का अस्त होना ही है पर्व का उद्देश्य आत्म शुद्धि का महान पर्व है पर्युषण- तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी,,पर्युषण के द्वितीय दिवस श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर में हुए धार्मिक आयोजन

मैत्री भावना का उदय और बैर भावना का अस्त होना ही है पर्व का उद्देश्य आत्म शुद्धि का महान पर्व है पर्युषण- तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी,,
पर्युषण के द्वितीय दिवस श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर में हुए धार्मिक आयोजन
देवास। संसार में भूखे रहने वालो से ज्यादा  खाने वाले  अस्वस्थ होते है। जैन शास्त्र में भी तपस्या का विशेष महत्व है । हमारे दुष्ट कर्मो का निवारण करने के लिए तपस्या अमोघ शस्त्र है। संघ पूजन, साधर्मिक भक्ति, तीर्थयात्रा एवं  स्नात्र महोत्सव हमारे वार्षिक कर्तव्य हैं हमे वर्षभर में इन कर्तव्यो का अवश्य पालन करना चाहिए। क्षमापना की उच्च एवं मैत्रीपूर्ण भावना को लेकर यह पर्युषण महापर्व आया है। मैत्री भावना का उदय और बैर भावना का अस्त हो उसे ही क्षमापना कहते है। हमारे द्वारा किसी भी जीव को कोई भी प्रकार का दुख पहुॅचा हो तो उस जीव से क्षमा मांगकर उसको शाती एवं समाधि मिले इस प्रकार का पुरूषार्थ करना चाहिये। यही सच्ची क्षमापना है। शास्त्र के अनुसार पर्युषण महापर्व के अंतर्गत जो जीव क्षमापना कर सकता है वहीं आराधक है और जो क्षमापना नहीं करता वह विराधक है। इस प्रकार क्षमापना धर्म का सार है। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के द्वितीय दिवस पर विशाल धर्मसभा में साध्वीजी तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी ने यह बात कही । आपने कहा कि जिस प्रकार जीवन के सभी कार्यो को संपादित करने का नियत स्थान होता है उसी प्रकार आराधना, उपासना एवं आत्मविकास के लिए भी मंदिर तथा उपाश्रय नियत स्थान है। जिस प्रकार अशुद्ध भूमि पर कोई सत्कार्य नहीं कर सकते उसी प्रकार हृदय की भूमि को भी सुविशुद्ध बनाकर ही उसमें पर्युषण की आराधना को स्थापित कर सकते है। वस्तु, स्थान एवं समय के अनुसार जिस प्रकार हमारे अंतरभावो में परिवर्तन आ जाता है उसी प्रकार इन पर्व के दिनो में भी हमें हमारे शुभ भावो में तीव्र अभिवृद्धि करना है। पर्युषण महापर्व आत्मशुद्धि के सुरों का जीवन में निनाद करता है। हमे भी हमारे भावो को शुद्ध करके इस पर्व की सच्ची आराधना करना है। आपने आगे कहा जीवन के आठ कर्मो में से सात का बंधन होता रहता है। लेकिन आयुष्य कर्म का बंधन विशेष पर्व तिथियो में ही होता है। इसलिए हमें इन पर्व दिनो में मन, वचन, कर्म को शुद्ध बनाना होगा। ताकि आगामी जीवन में हमे शुद्ध आयुष्य का बंध प्राप्त हो। शुद्ध एवं शुभ विचार जीवन में सहज रूप से नहीं आते है इसलिए इन शुभ विचारो के आते ही इन्हें कार्य रूप में परिवर्तित कर देना चाहिए तथा अशुभ विचारो को भविष्य पर छोड़ देना चाहिए।
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि आज पर्युषण के द्वितीय दिवस पर सुबह प्रतिक्रमण एवं सामूहिक स्नात्र पूजन का दिव्य अनुष्ठान हुआ। सुबह 9.15 बजे से प्रवचन हुए । दोपहर में 45 आगम पूजन का आयोजन हुआ। जिसका लाभ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ की समस्त सुश्राविकाओं ने प्राप्त किया। रात्रि को महाआरती एवं भक्ति भावना के रंगारंग कार्यक्रम संपन्न हुए ।  
आगामी कार्यक्रम
आगामी कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 22 अगस्त शुक्रवार को सुबह स्नात्र पूजन, कल्पसूत्र स्थापित करने एवं ज्ञानपूजन का चढ़ावा होगा। दोपहर 2 बजे श्री नवपदजी पूजन छगनलाल रखबचंद जैन त्रिमूर्ति परिवार द्वारा होगा। रात्रि महाआरती पश्चात कल्पसूत्र की भक्ति भावना का  आयोजन होगा।  

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