मेडिको-लीगल केसेज पर जिला अभिभाषक संघ देवास द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित, न्यायिक प्रक्रिया को नई दिशा,,
चिकित्सीय और विधिक प्रक्रियाओं के समन्वय पर हुई विशेष चर्चा,,
डॉ. डी.के. सतपथी और डॉ. हर्ष शर्मा ने मेडिको-लीगल मामलों पर दिया उद्बोधन,,,
देवास: [शकील कादरी] जिला अभिभाषक संघ द्वारा मेडिको लीगल केसेज आवश्यकता, प्रक्रिया एवं कियान्वयन विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन एन.डी. मूंदडा चैंबर परिसर जिला न्यायालय देवास में प्रात: 10 से शाम 5 बजे तक दो सत्रों में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री अजय प्रकाश मिश्र,विशेष न्यायधीश श्री विकाश शर्मा, मेडिको लीगल इंस्टीट्यूट, भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. डी.के. सतपथी, स्टेट फॉरेन्सिक साइंस लेबोरेट्री मप्र के पूर्व निर्देशक डॉ. हर्ष शर्मा एवं देवास एडीशनल एसपी जयवीर सिंह भदोरिया थे। कार्यशाला का शुभारंभ माँ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। समस्त अतिथियों का स्वागत संघ अध्यक्ष अशोक वर्मा व संघ। पदाधिकारियों ने पुष्पगुच्छ से किया। कार्यशाला में डॉ. डी.के. सतपथी जिन्होंने गैस त्रासदी की रात उन्होंने विषाक्तता के प्रभाव, पहचान, शवों की संख्या और दीर्घकालीन अध्ययन जैसी कई चुनौतियों के बीच उल्लेखनीय कार्य किया। उनका अनुभव देश में फॉरेंसिक सेवाओं और आपदा प्रबंधन की दिशा में महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है। डॉ. सतपथी ने अधिवक्ताओं के बीच अपनी बात रखते हुए मेडिको-लीगल मामलों की जटिलताओं, प्रक्रियाओं और न्यायिक संदर्भ में उनकी उपयोगिता पर मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने कहा कि सडक़ दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, यौन उत्पीडऩ, विषप्रयोग, घरेलू हिंसा और संदिग्ध मृत्यु जैसे मामलों में चिकित्सा और विधिक प्रक्रियाओं का समन्वय आवश्यक होता है। आज के दौर में अपराधों में वृद्धि, चिकित्सा लापरवाही के मामले और मानवाधिकार जागरूकता के चलते ऐसे मामलों का महत्व और भी बढ़ गया है। वैज्ञानिक विधियों द्वारा तैयार मेडिकल रिपोर्ट, पोस्टमार्टम, डीएनए जांच और चिकित्सीय प्रमाण न्यायिक निर्णय को प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। वकीलों के लिए मेडिको-लीगल ज्ञान इसलिए आवश्यक है ताकि वे वैज्ञानिक साक्ष्यों का तकनीकी विश्लेषण कर सकें और न्यायालय में अपने पक्ष को अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकें। बीमा दावों, मुआवजा मामलों और चिकित्सा लापरवाही जैसे सिविल मामलों में भी इस विशेषज्ञता की अहम भूमिका है। डॉ. हर्ष वर्मा जो कि फॉरेंसिक विज्ञान क्षेत्र में अपने 38 वर्षों के अनुभव है, जिसके आधार पर उन्होंने मेडिको-लीगल जांच की बारीकियों पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया। डॉ. शर्मा ने अपराध जाँच में वैज्ञानिक प्रमाणों के महत्व, क्राइम सीन इन्वेस्टिगेशन की प्रक्रिया, साक्ष्यों के संरक्षण तथा फॉरेंसिक रिपोर्टिंग की सटीकता पर विशेष व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि आधुनिक तकनीकों और प्रशिक्षित मानवबल से ही न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया जा सकता है। उन्होंने फॉरेंसिक विज्ञान के विभिन्न वास्तविक उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि वैज्ञानिक साक्ष्य अपराधों के समाधान में किस प्रकार निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे संघ अध्यक्ष वर्मा ने कहा कि अधिवक्ताओं, युवा अभिभाषकों एवं विधिक विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लेकर मेडिको-लीगल प्रक्रियाओं के व्यावहारिक पहलुओं की समझ को और प्रगाढ़ किया। न्यायिक कार्य के दौरान वकीलों को अक्सर ऐसे मामलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें चिकित्सीय तथ्यों की गहन समझ आवश्यक होती है। इस विषय में सीमित जानकारी के कारण अनेक बार वकीलों को मुकदमों की पैरवी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह कार्यशाला कानून और विज्ञान के समन्वय को समझने में अत्यंत उपयोगी साबित हुई। कार्यशाला का संचालन सचिव अतुल पंड्या ने किया एवं आभार उपाध्यक्ष पंकज पंड्या ने माना। इस अवसर पर मुख्य रूप से संघ उपाध्यक्ष गीता शर्मा, कोषाध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह तोमर, पुस्कालय सचिव श्वेतांक शुक्ला सहित बडी संख्या में वरिष्ठ, कनिष्ठ एवं युवा अधिवक्ता बडी संख्या में शामिल हुए।

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