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अन्नकूट अर्थात प्रकृति और अन्नदाता के प्रति आभार

अन्नकूट अर्थात प्रकृति और अन्नदाता के प्रति आभार
देवास। 5 नवम्बर को विश्वगीताप्रतिष्ठानम् देवास द्वारा दीपावली मिलन-अन्नकूट महोत्सव आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि युवा उद्यमी अध्यात्म व प्रेरकगुरु सरदार सनमीत खनूजा, अध्यक्षता प्रहलाद गुप्ता केंद्रीय व्यवस्था प्रमुख विश्वगीताप्रतिष्ठानम् थे। प्रकाश पर्व पर पर समरसता के संदेश के साथ गुरुनानक देव जी पर बौद्धिक देते हुए श्री खनूजा ने कहा कि गुरुनानक देव जी अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु-सभी के गुण समेटे हुए थे। वे एक ऐसे भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्हें सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है, उनकी शिक्षाएँ, भक्ति भजनों के माध्यम से व्यक्त की गईं, जिन्हें आमतौर पर शबद के रूप में जाना जाता है, जिनमें से कई आज भी मौजूद हैं, ध्यान ( सिमरन ) और दिव्य नाम के जाप के माध्यम से पुनर्जन्म से मुक्ति पर बल देती हैं। उन्हें मूल मंत्र की रचना का श्रेय दिया जाता है, जो सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह आदि ग्रंथ का प्रारंभिक पाठ है, जिसे श्री गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें सभी 10 सिख गुरुओं की रचनाएँ और बानी (कथन) शामिल हैं। प्रहलाद गुप्ता ने इस आयोजन के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण की पूजा, अन्नकूट गोवर्धन पूजा का ही एक रूप है, जो भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के कोप से मथुरा वासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना की याद में मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति और अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है। जिला संयोजक कृष्णकांत शर्मा ने सरल शब्दों में गीता महात्म अर्थानुवाद प्रस्तुत किया। प्रकाश पर्व पर समरसता भाव से अन्नकूट महोत्सव पर गीता जी के 15 वें अध्याय का स्वाध्याय किया गया। सभी के समृद्धि और सौभाग्य हेतु श्रीकृष्ण का विशेष पूजन कर उन्हें अन्नकूट का महाभोग अर्पित किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गीतानुरागी उपस्थित रहे। अन्त में आभार जितेन्द्र त्रिवेदी ने व्यक्त किया।

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