शिव जी आलोकीक है वो लोकीक श्रंगार नहीं करते
राम कथा में शिवजी के विवाह का प्रसंग
देवास। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं के विवाह के दिन भी श्रृंगार करने से इंकार कर दिया। भगवान भोलेनाथ का स्वभाव नेचरल रहने का है शिवजी के गणों ने शिव जी को चिता की भस्म लगायी ओर जटाओं को इकट्ठा कर सर्प से बांधकर मुकुट बनाया कानो में कुण्डल भी जीवित सर्प के है तथा हाथ में जो कंकण लगाये है वो भी सर्प के है अर्थात जिसका श्रृंगार आलोकिक है वह लोकिक श्रृंगार नहीं करते।शिवजी के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक महाराज श्री सुलभ शांतु जी महाराज ने कहा कि विवाह के दिन भोलेनाथ भूतनाथ हो गये। शंकर का अर्थ होता है कल्याण का कर्ता कल्याण को करने वाला, चिता की भस्म लगाने का संकेत है जीवन के परम सत्य से शरीर का श्रंगार करना है। श्रृंगार ही करना हो तो आत्मा का श्रृंगार करों क्योंकि शरीर तो बदलेगा लेकिन आत्मा वहीं रहेगी तन तो मिट्टी में मिल जायेगा लेकिन आत्मा अमर रहेगी कर्मो के प्रताप से मानव तन प्राप्त होता है लेकिन मोह में आकर मन भटक जाता है। शिव के मस्तक पर चन्द्रमा है राहु के भय से चन्द्रमा शिवजी के पास शरण में आया तो शरण में आये शिश पर बैठा लिया। शिवजी की शिश पर गंगा है। गंगा स्वर्ग से उतरी तो गंगा को शिवजी ने अपने मस्तक पर स्थान दिया और धरती पर उतारा शिव सोपान बन गये और चन्दमा और गंगा दोनो ही जगत पूज्य हो गये। शिवजी के गले में कंठ मे विष है शिवजी सभी पारिस्थति में सम रहते है सबसे ज्यादा
कुछ संतुलीत है तो वह शिव ही है ऐसा कहा जाता है कि शिवजी का जो डमरू बजता है उसे सुनकर जीवन की प्रतिकूलता समाप्त हो जाती है दीनों पर दया करते है इसलिये दिनबन्धु है इस तरह शिवजी का श्रृंगार हुआ और नंदी पर सवार होकर शिवजी ब्याह रचाने चले नंदी धर्म के प्रतिक है शिवजी धर्मारूढ होकर चले है देवी देवता भगवान शिव जी के इस स्वरूप को देखकर चकित हो रहे है शिवजी ने अपने गणों को बुलाया वह अद्भूत है किसी का तो मुंख ही नहीं है तो किसी के बहुत से मुख है किसी के बहुत से हाथ है तो किसी के हाथ ही नहीं है, किसी के पैर है तो बहुत पैर है किसी के नेत्र ही नही है तो किसी के कई नेत्र है शिवजी के बरात में देव, मनुज, नर नारी सिध्द मुनी योगी, भूत प्रेत पिसाच डाकिनी शाकिनी सब है शिवजी से बड़ा समरसता का कोई प्रतिक नहीं हो सकता सब एक ही रंग में रंगे हुए है बारात की देखकर कई बच्चे और गांव वाले भाग गये। दुल्हा सरकार द्वार पर आ गये है दुल्हा का वेष देखकर मां के हाथ से थाल गिर गया और घर की ओर भागी ओर विलाप करने लगी ओर नारद जी को कोसने लगी पार्वती जी उन्हें ने उन्हें समझाया है कि मां विधाता के लेख कभी नहीं मिटते नारद जी आते है तथा वह बताते है कि पार्वतीजी स्वयं शक्तिस्वरूपा है तथा वे सदैव शिव के साथ रहती है तथा भगवान के स्वरूप का दर्शन कराकर आनंद के साथ वैदिक रीति से शिव पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ। आनंद भवन पेलेस पर चल रहे परम श्रध्देय संत शिरोमणी श्री रविशंकर जी महाराज रावतपुरा सरकार के सानिध्य में चल रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत श्री राम कथा में श्री सुलभ शांतु जी महाराज के मुखारविन्द से चल रही कथा के दौरान आज आयोजक विधायक राजमाता गायत्री राजे पवार महाराज विकमसिंह पवार एवं कथा वाचक महाराज श्री ने सावन के पवित्र मास में अभिमंत्रित रुद्राक्षों का वितरण किया। आज की कथा समापन पर रामायण जी की आरती सम्पन्न हुई।
राम कथा में शिवजी के विवाह का प्रसंग
देवास। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं के विवाह के दिन भी श्रृंगार करने से इंकार कर दिया। भगवान भोलेनाथ का स्वभाव नेचरल रहने का है शिवजी के गणों ने शिव जी को चिता की भस्म लगायी ओर जटाओं को इकट्ठा कर सर्प से बांधकर मुकुट बनाया कानो में कुण्डल भी जीवित सर्प के है तथा हाथ में जो कंकण लगाये है वो भी सर्प के है अर्थात जिसका श्रृंगार आलोकिक है वह लोकिक श्रृंगार नहीं करते।शिवजी के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक महाराज श्री सुलभ शांतु जी महाराज ने कहा कि विवाह के दिन भोलेनाथ भूतनाथ हो गये। शंकर का अर्थ होता है कल्याण का कर्ता कल्याण को करने वाला, चिता की भस्म लगाने का संकेत है जीवन के परम सत्य से शरीर का श्रंगार करना है। श्रृंगार ही करना हो तो आत्मा का श्रृंगार करों क्योंकि शरीर तो बदलेगा लेकिन आत्मा वहीं रहेगी तन तो मिट्टी में मिल जायेगा लेकिन आत्मा अमर रहेगी कर्मो के प्रताप से मानव तन प्राप्त होता है लेकिन मोह में आकर मन भटक जाता है। शिव के मस्तक पर चन्द्रमा है राहु के भय से चन्द्रमा शिवजी के पास शरण में आया तो शरण में आये शिश पर बैठा लिया। शिवजी की शिश पर गंगा है। गंगा स्वर्ग से उतरी तो गंगा को शिवजी ने अपने मस्तक पर स्थान दिया और धरती पर उतारा शिव सोपान बन गये और चन्दमा और गंगा दोनो ही जगत पूज्य हो गये। शिवजी के गले में कंठ मे विष है शिवजी सभी पारिस्थति में सम रहते है सबसे ज्यादा
कुछ संतुलीत है तो वह शिव ही है ऐसा कहा जाता है कि शिवजी का जो डमरू बजता है उसे सुनकर जीवन की प्रतिकूलता समाप्त हो जाती है दीनों पर दया करते है इसलिये दिनबन्धु है इस तरह शिवजी का श्रृंगार हुआ और नंदी पर सवार होकर शिवजी ब्याह रचाने चले नंदी धर्म के प्रतिक है शिवजी धर्मारूढ होकर चले है देवी देवता भगवान शिव जी के इस स्वरूप को देखकर चकित हो रहे है शिवजी ने अपने गणों को बुलाया वह अद्भूत है किसी का तो मुंख ही नहीं है तो किसी के बहुत से मुख है किसी के बहुत से हाथ है तो किसी के हाथ ही नहीं है, किसी के पैर है तो बहुत पैर है किसी के नेत्र ही नही है तो किसी के कई नेत्र है शिवजी के बरात में देव, मनुज, नर नारी सिध्द मुनी योगी, भूत प्रेत पिसाच डाकिनी शाकिनी सब है शिवजी से बड़ा समरसता का कोई प्रतिक नहीं हो सकता सब एक ही रंग में रंगे हुए है बारात की देखकर कई बच्चे और गांव वाले भाग गये। दुल्हा सरकार द्वार पर आ गये है दुल्हा का वेष देखकर मां के हाथ से थाल गिर गया और घर की ओर भागी ओर विलाप करने लगी ओर नारद जी को कोसने लगी पार्वती जी उन्हें ने उन्हें समझाया है कि मां विधाता के लेख कभी नहीं मिटते नारद जी आते है तथा वह बताते है कि पार्वतीजी स्वयं शक्तिस्वरूपा है तथा वे सदैव शिव के साथ रहती है तथा भगवान के स्वरूप का दर्शन कराकर आनंद के साथ वैदिक रीति से शिव पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ। आनंद भवन पेलेस पर चल रहे परम श्रध्देय संत शिरोमणी श्री रविशंकर जी महाराज रावतपुरा सरकार के सानिध्य में चल रहे चातुर्मास व्रत अनुष्ठान के अन्तर्गत श्री राम कथा में श्री सुलभ शांतु जी महाराज के मुखारविन्द से चल रही कथा के दौरान आज आयोजक विधायक राजमाता गायत्री राजे पवार महाराज विकमसिंह पवार एवं कथा वाचक महाराज श्री ने सावन के पवित्र मास में अभिमंत्रित रुद्राक्षों का वितरण किया। आज की कथा समापन पर रामायण जी की आरती सम्पन्न हुई।
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