पहलगाम में आतंकियों द्वारा निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या की आनंद मार्ग के विश्व मंच पर कड़े शब्दों में निंदा कर शोकाकुल परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की
देव वह नहीं जो केवल पूज्य हो, बल्कि वह है जो अपने आचरण से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है-आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत
देवास। उज्जैन, इंदौर,भोपाल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा सहित मध्यप्रदेश से लगभग 15 जिलों से काफी संख्या में आनंद मार्गी विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में भाग लेने डॉ अशोक शर्मा, विकास दलवी, तन्मय निगम,महावीर जैन, शुभांगी दलवी, बिंदु निगम,लाजवंती शर्मा,मीनाक्षी तंवर, ओशी निगम,सोनिया शर्मा, रेणु दुबे आदि आनंद मार्गी शिमला गए । आनन्द मार्ग प्रचारक संघ देवास के सेवा धर्म मिशन के भुक्तिप्रधान हेमेन्द्र निगम काकू ने बताया कि आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा चौड़ा मैदान, पीटर हॉफ प्रांगण शिमला हिमाचल प्रदेश में दिनांक 26 से 27 अप्रैल 2025 को आयोजित दो दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन के प्रथम दिन श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने प्रवचन के प्रारंभ में उन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों द्वारा हुई निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए शोकाकुल परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।
विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन को
देव संस्कृति विषय पर हजारों साधकों को संबोधित करते हुए श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख जी ने कहा कि भारतवर्ष, विशेषकर हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा, मात्र रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक गहन जीवन-दृष्टि है जिसका मूल तत्व है देवत्व। मनुष्य केवल जन्म से नहीं, अपितु आचरण से देव बनता है।
देव श्रेष्ठ आचरण का प्रतीक
संस्कृत वचन श्रेयांसि बहुविघ्नानि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ कार्यों में अनेक बाधाएँ आती हैं, परंतु सत्य, करुणा, सेवा और संयम के पथ पर अडिग रहने वाला व्यक्ति ही वास्तव में देव कहलाता है। देव वह नहीं जो केवल पूज्य हो, बल्कि वह है जो अपने आचरण से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है।
देव संस्कृति की जड़ें -शिव और पार्वती का आदर्श जीवन
भारतीय दर्शन में भगवान सदाशिव और माता पार्वती को आदर्श जीवन के प्रतीक के रूप में स्वीकारा गया है। उनकी जीवन शैली प्रेम, तप, त्याग और लोकमंगल की अद्भुत समन्वययुक्त थी, जो आज भी देव संस्कृति के मूल स्तंभ है
देव संस्कृति साधना का जीवंत मार्ग
आचार्य जी ने कहा कि देव संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि साधना है। मंदिरों में पूजा करना पर्याप्त नहीं है आवश्यक है कि हम अपने अंतःकरण को भी मंदिर बनाएं। आज जब मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में भटक रही है, तब देव संस्कृति का पुनरुद्धार समय की मांग बन गया। आइए, हम अपने जीवन में आचरणमूलक दिव्यता लाकर इस धरती को पुनः देवभूमि बनाएं प्रेम, सेवा और शाश्वत आनंद से।
उक्त जानकारी आनंद मार्ग प्रचारक संघ जिला देवास के सचिव आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत ने दी।
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