श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर के चातुर्मास का नगर प्रवेश संपन्न निकाली गई भव्य शोभा यात्रा,,,
संत परिश्रम करता है तो बदले में परिवर्तन आना चाहिये-साध्वी तत्वरसाजी
देवास। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर चातुर्मास प्रवेश के उपलक्ष्य में भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष कलिकुंड के तीर्थ उद्धारक आचार्य राजेन्द्र सूरीश्वरजी एवं गच्छाधिपति राजशेखर सूरीश्वरजी तथा तत्वदर्शना श्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वीजी श्री तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी, तत्वसम्प्रज्ञा श्रीजी, तत्वश्रमणा श्रीजी आदि ठाणा चार का चातुर्मास संपन्न होने जा रहा है। इस अवसर पर साध्वीजी जितेशरत्ना श्रीजी साध्वी मंडल विशेेष रूप से उपस्थित थे। प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि 6 जुलाई रविवार को सुबह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर में सकल श्री संघ की नवकारशी के पश्चात मंडी धर्मशाला से चातुर्मास प्रवेश की अनेक आकर्षणो से सुसज्जित शोभा यात्रा प्रारंभ हुई। साध्वीजी की अगवानी में समाजजनों द्वारा अक्षत एवं श्रीफल की गहुली बनाकर स्वागत किया गया । शोभा यात्रा में दिव्य राजेन्द्र घोष एवं एकादश पूजन द्रव्य लेकर चल रही बालिका मंडल आकर्षण का केन्द्र रही। 108 महिलाओं का समूूह मस्तक पर मंगल कलश लेकर चल रहा था। सुसज्जित बग्घी में गुरूदेव का चित्र स्थापित किया गया था। पुरूष एवं महिला मंडल विशेष वेशभूूषा में उपस्थित थे। इस अवसर पर पूज्य गुरूदेव के भारत भर में बसे हुए बड़ी संख्या में गुरू भक्तों का पदार्पण हुआ। राजस्थान, महाराष्ट्र, दक्षिण राज्य आदि प्रांत के उदयपुर, कोटा, सिंगोली, रतलाम, मुम्बई, चैन्नई, इंदौर, उज्जैन आदि स्थानों से गुरू भक्तों का आगमन हुुआ। काम्बली अर्पण एवं प्रथम गुरू पूजन गुरू देव के सांसारिक परिवार द्वारा किया गया। ग्रंथ समर्पण का लाभ नितेश पाडलेचा कोटा ने प्राप्त किया। स्वागत गीत सुलसा मंडल ने प्रस्तुत किया। भक्ति संगीत की प्रस्तुति विजय जैन, गौरव जैन भोमियाजी, मनीष जैन एवं अनूप जैन ने दी। स्वागत भाषण अशोक जैन मामा ने दिया। अतिथि सम्मान विलास चौधरी, राजेन्द्र जैन, भरत चौधरी, संतोष सेठिया, सुधीर जैन, राकेश तरवेचा, अजय मूणत, दीपक जैन, अतुल जैन, अंकित जैन, अनूप शेखावत, मनोज कटारिया ने किया। आभार शैलेन्द्र चौधरी ने माना। इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि अथक परिश्रम करके संत यदि हमारे जीवन में आते हैं तो बदले में परिवर्तन आवश्यक है। यदि जीवन परिवर्तित नहीं होता तो वह सार्थक जीवन नहीं बन सकता। परमात्मा एवं गुरू की आज्ञा पालन करने केे लिये ही चातुर्मास का आयोजन किया जाता है। प्रभु ने हमें चार प्रकार के धर्म बताए हैं। दान, शील, तप और भाव। इन सभी में सर्वोच्च स्थान दान का है, जिस प्रकार सागर और सरिता दोनों के पास पानी है लेकिन सागर का पानी खारा और सरिता का पानी मीठा होता है। क्योंकि सागर संग्रहित करता है और सरिता बहते हुए जल को सभी को बांटती रहती है। इसी प्रकार जो देता है उसका जीवन भी निर्मल, मधुर एवं स्वच्छ बन जाता है।
आगामी कार्यक्रम
9 जुलाई चातुर्मास चवदस से चार माह तक के प्रतिदिन प्रवचन की श्रृंखला प्रारंभ होगी। प्रवचन सुबह 9.15 से 10.30 बजे तक संपन्न होंगे।
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