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जहाँ भाव, भक्ति और प्रेम का उफान होता है, वहीं ईश्वर स्वयं को प्रकट करते हैं- आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत

जहाँ भाव, भक्ति और प्रेम का उफान होता है, वहीं ईश्वर स्वयं को प्रकट करते हैं- आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत
देवास। जिला आनंद मार्ग संघ के सेवा धर्म मिशन के भुक्तिप्रधान हेमेन्द्र निगम काकू ने बताया कि दिनांक 24 से 26 अक्टूबर 2025 तक जमालपुर बिहार में आनंद प्रचारक संघ के विश्व स्तरीय धर्म महा सम्मेलन में भारत ही नहीं अपितु विदेशी अनुयायी भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख ने कहा कि प्रभात संगीत मानसाध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। विशुद्ध आनंद प्राप्त करने हेतु मुक्त कंठ से कीर्तन अनिवार्य है। उन्होंने वेदवाक्य का उल्लेख करते हुए कहा कि नाहं वसामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।। इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि नारायण (विष्णु) स्वयं कहते हैं मैं न तो वैकुण्ठ (जहाँ कोई मानसिक कुंठा नहीं होती) में रहता हूँ, न ही योगियों के हृदय की शांति में। मैं वहाँ निवास करता हूँ, जहाँ मेरे भक्त प्रेमपूर्वक मेरा कीर्तन करते हैं। आगे कहा कि योग की निःशब्द शांति में स्पंदन नहीं होता, परंतु भक्ति और कीर्तन की ऊर्जावान लहरें ब्रह्मांड तक विस्तृत होती हैं। जहाँ भाव, भक्ति और प्रेम का उफान होता है, वहीं ईश्वर स्वयं को प्रकट करते हैं। उन्होंने नारद का अर्थ बताते हुए कहा कि जो नर (जल, जीवन, भक्ति) का द (दाता) है, वही सच्चा नारद है। अंत में, उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से आवाहन किया कि वे भावपूर्ण कीर्तन एवं प्रभात संगीत के माध्यम से अपने हृदय को आत्मिक आनंद से भरें और समाज में भक्ति व सेवा का प्रकाश फैलाएँ।


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