आचार्यश्री के प्रथम नगर आगमन पर निकली शोभायात्रा,,
7 से 13 मार्च तक सात दिवसीय प्रवचन श्रृंखला का दिव्य शंखनाद
देवास। धर्म के प्रति प्रेम और प्रेम को ही धर्म मानने वाला परिवार स्वतः ही स्वर्ग बन जाता है। जिस प्रकार पौधे की हरियाली बताती है कि उसकी जड़ में पानी है, उसी प्रकार परिवार की खुशहाली बताती है कि परिजनों में आपस में प्रगाढ़ प्रेम है। परस्पर प्रेम ही परिवार कोे स्वर्ग बनाता है। जो परिवार प्रेम को ही धर्म मान लेता है वहां संवाद हो सकते हैं विवाद कदापि नहीं। हमारा प्रथम धर्म सभी के प्रति प्रेम ही होना चाहिये। शेष धार्मिक क्रियांए द्वितीय स्थान पर है।
जो भी हमारे नजदीक हैं उसके प्रति हमारे मन में स्नेह एवं प्यार का भाव झलकना चाहिये। प्रेम के बिना धार्मिक क्रियाएं लाभदायक नहीं बन सकती है। परिवार को स्वर्ग बनाने केे अन्य तीन उपाय हैं, हर स्थिति में एक दूसरे का साथ देना, बड़ों को सम्मान देना और छोटो को संस्कार देना। यह बात श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर रामचंद्र सूरी आराधना भवन में विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए आचार्य श्री जिनसुंदर सुरीश्वरजी एवं धर्मबोेधि सुरीश्वरजी ने कही। उल्लेखनीय है कि पूज्य आचार्य श्री देवास नगर के उपकारी गुरू आचार्य वीररत्न सुरीश्वरजी म.सा. के गुरू भाई एवं तपोवन प्रेरक युगप्रधान श्री चंद्रशेखर विजयजी म.सा. के शिष्य रत्न हैं।
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