प्रकृष्ट साधना-तपस्या-समता के दिव्यपुंज थे भगवान महावीर,,
अर्हं को पाने के लिए अहं त्यागना होगा - तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी
देवास। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर पर्युषण महापर्व के छठे दिवस आयोजित विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए साध्वीजी तत्वरसा श्रीजी, तत्वश्रेया श्रीजी ने कहा कि पर्वाधिराज श्री पर्युषण महापर्व का छटा दिवस साधना जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। भगवान महावीर के जन्म-काल, साधना-काल तथा सिद्धि-काल की विषद विवेचना सुनकर हमारा मन, मस्तिष्क उस विभूति के चरणो में झुक जाता है जिसने सिर्फ उपदेश ही नहीं दिये, सर्वप्रथम उनका स्वजीवन में पालन किया। वे जानते थे जीवन में अहं होगा तो अर्हं याने प्रभु की प्राप्ति नहीं होगी। अजन्मा बनने के लिए ही जिनका जन्म हुआ, जिन बनने के लिए ही जिनका जीवन था, निर्वाण पाने के लिए ही जिन्होंने मृत्यु प्राप्त की, ऐसे महावीर स्वामी को जिसने भी अपने अंर्तमन में स्थापित कर लिया वह व्यक्ति ही इस जीवन को सार्थक कर सकता है।
आपने आगे कहा कि-प्रभु महावीर के जीवन में इन विशिष्टता के दर्शन होते है- प्रकृष्ट साधना , प्रकृष्ट तप तथा प्रकृष्ट समता। उन तीन विशेषताओ के आधार पर ही आपने सम्यक दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र की प्राप्ति की। संपन्न परिवार एवं विशाल साम्राज्य का परित्याग करके प्रभु ने संयम पथ पर प्रस्थान किया एवं साधना को मूल मंत्र मनाया। साढ़े 12 वर्ष के साधनाकाल में प्रभु ने मौन रख कर विशिष्ट ऊर्जा प्राप्त की। धरती पर बैठकर या लेटकर कभी शयन न करके कायिक शक्ति संपादित की। कायोत्सर्ग ध्यान में रहकर तत्व के महत्व का चिंतन करके मानसिक बल प्राप्त किया।
संयम दीक्षा प्राप्त करने के एक वर्ष पूर्व एक दिन में एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मोहर का दान करते हुए एक वर्ष में तीन अरब इठ्यासी करोड़ अस्सी लाख स्वर्ण मोहर का दान दिया। दीक्षा दिन से ही परमात्मा ने विशिष्ट तपस्या का शुभारंभ किया। साढ़े बारह वर्ष के संयम-काल में सिर्फ 349 दिन ही प्रभु ने भोजन लिया, वह भी दिन में एक बार । परमात्मा की तपस्या का विवरण यदि हम सुने तो स्तब्ध रह जावेगें। उन्होंने छह माह के उपवास दो बार, चार मास के उपवास नौ बार, तीन मास के दो बार, ढाई मास के दो बार, दो मास के छह बार, डेढ़ मास के दो बार, एक मास के बारह बार, पन्द्रह दिन के बहोत्तर बार, तीन दिन के बारह बार तथा दो दिन के उपवास दो सौ उनतीस बार किये। यह प्रभु के तप की तेजस्वी तारीख एवं तवारीख। तभी तो कहते है साधना से ही सिद्धि प्राप्त होती है। प्रकृष्ट समता के दिव्य दर्शन कराते हुए महावीर स्वामी ने साधना-काल में कई कठोर प्रतिज्ञा की। इसमें सबसे भीषण प्रतिज्ञा छ मास के उपवास करने वाली, हाथ-पैर में बेढ़ी एवं आंखो में अश्रुधारा रखने वाली चंदनबाला के हाथो से पारणा करना था। इसी के साथ प्रीति स्थान का त्याग, काउसग्ग मुद्रा में ध्यान, गृहस्थ जीवन का त्याग, मौन तथा हाथो में लेकर भोजन करना ये प्रभु की प्रतिज्ञाएं थी।
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि पलनाजी की भक्ति भावना के अवसर पर बड़ी संख्या में समाज जन ,महिलाएं एवं बच्चे आदि उपस्थित थे। बच्चों को ज्ञान के उपकरण का वितरण किया गया।
आगामी कार्यक्रम
आगामी कार्यक्रम के अंतर्गत 26 अगस्त दोपहर 2 बजे श्री नवपदजी पूजन का आयोजन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ ट्रस्ट मंडल द्वारा संपन्न होगा। 27 अगस्त बुधवार को संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा।


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