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आनंद मार्ग की साधना राजाधिराज योग की साधना है,,,श्रद्धा से विश्वास और विश्वास से श्रद्धा विकसित होती है ,श्रद्धा के बिना आध्यात्मिक ज्ञान संभव नहीं है

आनंद मार्ग की साधना राजाधिराज योग की साधना है,,,
श्रद्धा से विश्वास और विश्वास से श्रद्धा विकसित होती है ,श्रद्धा के बिना आध्यात्मिक ज्ञान संभव नहीं है
देवास। जमालपुर बिहार में 24 से 26 अक्टूबर 2025 तक हो रहे आनंद मार्ग प्रचारक संघ के विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में प्रदेश के देवास, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, सीहोर, होशंगाबाद आदि अन्य जिलों से भी अनुयायी धार्मिक लाभ लेने के गए हैं। आनंद मार्ग देवास के सचिव आचार्य शांतवृततानंद अवधूत ने प्रवचन में भक्ति के अवस्था भेद के बारे में बताया। आपने कहा कि  भक्ति कई रूपों में अभिव्यक्त होती है उनमें से एक रूप है श्रद्धा। इस विषय पर पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानन्द अवधूत पर कहा इसका मूल है प्रेम और प्रेम क्या है ? अखण्ड सत्ता परम पुरुष के प्रति आकर्षण ही प्रेम है । प्रेम का विलोम है काम अर्थात खंड सत्ता के प्रति आकर्षण । श्रद्धा और विश्वास के बिना सिद्धजन भी अपने अंतःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते है । सिद्ध जन माने जो आध्यात्मिक साधना में उच्च स्तर को प्राप्त कर चुके हैं । आध्यात्मिक विकाश करने के लिए श्रद्धालु होना होगा ।
 श्रद्धा और विश्वास एक दूसरे के पूरक है।श्रद्धा से विश्वास और विश्वास से श्रद्धा विकशित होती है ।श्रद्धा के बिना आध्यात्मिक ज्ञान संभव नहीं है । इसके मूल में है प्रेम ।  भक्ति का एक अन्य रूप है प्रीति । मनुष्य इंद्रिय विषयों में कितना सुख पाता है, इसे पाने के लिए वह कहां-कहां नहीं भटकता है । बड़े-बड़े जोखिम उठाने के लिए तैयार रहता है । लेकिन भक्त को क्या चाहिए ? वह प्रभु के प्रति तीव्र प्रेम रखता है । यदि तीव्र प्रेम नहीं होगा तो वह बह जाएगा इंद्रिय रस की ओर ।कार्यक्रम में आचार्य कल्याणमित्रानंद,आचार्य पुंयेशानंदआचार्य ब्रह्मबुध्दनंद अवधूत, आचार्य सुष्मितानन्द अवधूत आदि उपस्थित रहे। भक्ति का अंतिम सोपान है राधा भक्ति जब जीव भाव अन्य विषयों से हट जाता है तब वह कहता है कि परम पुरुष मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं केवल तुम्हें और केवल  तुम्हें ही चाहता हूं। उसके मन में भाव है कि परम पुरुष मेरे और केवल मेरे हैं।  इस स्थिति में वह स्वयं को भूल जाता है। आनंद मार्ग की साधना है राजाधिराज योग, जिसे मार्ग गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने दिया ने यही है भक्ति की पराकाष्ठा है। उक्त जानकारी हेमेन्द्र निगम काकू ने दी। 


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